Diya Jethwani

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लेखनी कहानी -02-Jul-2023... एक दूजे के वास्ते... (2)

कॉलेज में मैंने आर्ट्स लिया....। मुझे खेलों के साथ साथ चित्रकारी का भी बहुत शौक़ था...। 

मेरे दोनों बड़े भाई शादी करके बम्बई में शिफ्ट हो चुकें थे..। मेरी बड़ी बहन की भी शादी हो चुकी थीं..। घर में अब सिर्फ मम्मी पापा और मैं थे...। लेकिन तीन शादियों के बाद और पापा की सेहत की वजह से हमारी आर्थिक स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती जा रहीं थीं...। 


बड़े भाई घर का खर्च तो भेजते थे। 
पर अपनी मर्जी से अपने मुताबिक। 
इसलिए पढा़ई के साथ साथ मैं पार्ट टाइम काम भी करतीं थीं। 
बच्चों को ट्यूशन देने का। 

सुबह कालेज
फिर घर के काम में मम्मी की मदद और फिर ट्युशन क्लासेस। 
ऐसे ही जिंदगी चल रही थी। 

कॉलेज का पहला ही साल था कि.....एक और तुफान आया। 

मेरी मम्मी को कैंसर हो गया। 
पापा की तबियत वैसे ही ठीक नहीं रहती थी, ऐसे में मम्मी को कैंसर। 

भाईयों को मैसेज भेजा, लेकिन कोई सपोर्ट नहीं। 
बहन भी अपने ससुराल में व्यस्त थी। 
उसकी तरफ से भी कोई मदद नहीं मिलीं। 

मम्मी का इलाज करवाना भी जरुरी था...। लेकिन उसके लिए पैसों का इंतजाम कहीं से भी नहीं हो पा रहा था...। रिश्तेदारों और पड़ोसियों से भी मदद मांगी... लेकिन कहीं से कुछ नहीं मिला... सिवाय तिरस्कार के...। शायद ये बात सच ही थीं की... पैसा..... पैसेवालों को ही दिया जाता हैं...। 



बचपन से लेकर आज तक मुझे कभी अपनों का प्यार नहीं मिला। 
लेकिन फिर भी उनको ऐसे में छोड़ देना मेंरे लिए नामुमकिन था। 
मम्मी के इलाज के लिए मैंने नाईट में एक्सट्रा क्लासेस शुरू कर दी। 

         मम्मी को रेडिएशन के डोज़ बोले गए। 
क्योंकि आपरेशन में खतरा था। हर हफ्ते में दो बार उनको डोज़ लगवाने जाना पड़ता था। हालांकि इलाज सरकारी अस्पताल में ही चल रहा था...। पर वहाँ भी बिना पैसे कुछ काम नहीं होता हैं...। 

        कैंसर बच्चेदानी में था। तकलीफ तो होनी थी। 
पहले डोज़ में ही मम्मी को असहनीय दर्द हुआ। 

मगर उस वक्त उनको हिम्मत देने के अलावा मैं और कुछ कर भी नहीं सकती थी। 

  डोज़ लगवाने के बाद हास्पिटल से बाहर आकर रिक्शा रोकी। घर आकर सुबह जो नाश्ता बनाकर गई थी, वो उनको सर्व करके दिया.....। 
फिर उनको दवाई देकर सुला दिया। 

 मम्मी के सोते ही पापा को भी दवाई दी। और अपने काम पर लग गई।
 
ये मेरा रोज़ का रूटिन बन गया था...।
सुबह होतें ही कॉलेज,फिर घर आकर घर का काम,फिर हास्पिटल ........फिर आकर ट्युशन क्लासेस और घर का काम....। पर आज मेरे कॉलेज की छुट्टी थीं क्योंकि आज वहाँ खेल महोत्सव का चयन होने वाला था। 

        पहले मैंने भी नाम लिखवाया था......पर अचानक आई ऐसी परिस्थितियों की वजह से मैं नहीं गई और अपना नाम वापस ले लिया। 
        
         ( रश्मि कुछ सोचते हुए खिड़की के पास आई की अचानक उसकी नज़र सामने से आते हुए राहुल  और अलका पर पडी़। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान गई। वो दौड़ कर बाहर उनके पास आई...।दरवाजे की आवाज से रश्मि के पेरेंट्स उठ गए थें....।) 

दोनों ने अन्दर आते ही अंकल आंटी के पांव छुएं। 

"अब आपकी तबीयत कैसी है आंटी "


"अभी ठीक है"। आओ बैठो बेटा"। 

" नहीं आंटी आप आराम किजिए हमने वैसे ही अचानक आकर आपकी नींद खराब की ......हमें बस रश्मि से कुछ काम था हम इसके कमरे में जाकर बात कर लेते हैं। "

रश्मि उन दोनों को अन्दर ले गई। 
"क्या बात है तुम दोनों ऐसे अचानक मेरे घर पर कैसे आए। तुम्हें तो पता है ना कि मम्मी पापा दोनों को पसंद नहीं है ......इस तरह मेरे किसी भी दोस्त का आना। उन्होंने तुम्हें भी तो कितनी बार टोका है ना। फिर आज ऐसी क्या बात हो गई। "


 अरे मेरी माँ बस कर। हमें सब पता है। 
अलका ने हंसते हुए कहा।
 
हम यहाँ किसी खास काम से आए हैं रश्मि। 
राहुल ने कहा। 


 खास काम, कैसा खास काम। 
रश्मि चौंकते हुए बोलीं। 


रश्मि पहले अपनी आँखे बंद करो। राहुल ने कहा। 

पर क्यूँ। रश्मि फिर से हैरान होकर बोलीं। 


"अरे हम तुझे मार कर भाग नहीं रहे हैं। ये खेल हम बचपन में खेलते थे"। अलका ने हंस कर कहा तो रश्मि भी हंस पडी़।

"ठीक है मेरी जान ये ले कर ली आंखें बंद। "
रश्मि ने अपनी आँखों को बंद करते हुए कहा। 

उसकी आंखें बंद होते ही राहुल ने अपनी जींस की पाकेट में से एक पेपर निकाला और रश्मि की आंखों के सामने पकड़ते हुए बोला " अब अपनी आँखों को खोलों मैडम "

रश्मि ने आंखें खोल कर उस पेपर की तरफ़ देखा और उसे हाथ में लेकर अचरज से  पूछा " ये क्या है। "

"तुम खुद ही पढ़ लो।" अलका ने कहा। 
रश्मि उसे पढने लगी। 


पेपर पढ़कर वो गुस्से से बोली- "ये सब क्या है ऐसा कैसे हो सकता है। मैंने तो अपना नाम वापस ले लिया था.....फिर ये एन्ट्री फार्म मेरे नाम का.....वो भी तीन प्रतियोगीताओ में......।"


इसमें इतना हैरान होने की जरूरत नहीं है डियर। कॉलेज में तु हर खेल में सबसे अव्वल रहतीं है तो कॉलेज के हैड ने तुझे तीनों खेलों में खुद ही शामिल किया है, उन्होंने तेरा रेजिक्नेशन रिजेक्ट कर दिया हैं....और हमसे कहा हैं की हम कैसे भी करके आज का आज ये फॉर्म तुझसे साइन करवा कर लाए....क्योंकि इसमें सिर्फ हमारा कॉलेज  नहीं बल्कि आसपास के और कॉलेज भी हिस्सा ले रहे हैं, और हमारे कॉलेज की लिडर ही ना खेले तो...। अलका ने रश्मि को गले लगाते हुए कहा। 


"वो सब ठीक है अलका पर तु तो अच्छे से जानती है कि इस वक़्त मेरे घर की हालत कैसी है। ऐसे में मैं प्रैक्टिस करने का भी समय नहीं निकाल पाउंगी। और फिर मम्मी के डोज़ के लिए तो मुझे घण्टों हास्पिटल में जाना पड़ता है। मैंने इसलिए ही अपना नाम भी वापस ले लिया था। तु मेरी बात समझ और प्लीज हैड सर को ये पेपर वापस कर दे। "

राहुल- " आई एम सॉरी...रश्मि ....पेपर तो अब तुझे साईन करके ही देने पडे़गें सर को.....। रही बात आंटी को हास्पिटल ले जाने की तो हम  कब काम आऐगें....। तु सिर्फ इस वक़्त अपना सोच.....। तेरा बचपन से सपना था ....ऐसे ही किसी बड़ी प्रतियोगीता में भाग लेने का। आज मौका मिला है  तो उसे जाने मत दे। "
   

रश्मि-" लेकिन मुझे परमिशन नहीं मिलेगी मम्मी पापा से....। वो शुरू से ही मेरे खेल को लेकर नाराज रहते हैं.....।सपने देखना अलग बात हैं राहुल.... लेकिन हर किसी का हर सपना सच हो ये जरुरी तो नहीं....। "

राहुल  - "उसकी टेन्शन भी तु मत कर हम दोनों मिलकर बात करेंगे उनसे...। तु बस अभी जल्दी से ये फार्म देख कर ......अपने साईन करके हमें दे तो हम कालेज में सबमिट करवा दे। "

लेकिन राहुल....अलका तु तो.... 

लेकिन वेकिन... कुछ नहीं माय डियर...अभी तु फटाफट से सिग्नेचर करतीं हैं या नहीं.... वरना मैं... मैं नहीं... हम दोनों नाराज हो जाएंगे...। 

रश्मि ने मन मारकर पेपर साईन करके राहुल को दे दिया। 

राहुल ने मुस्कुराते हुए पेपर लेकर अपनी पाकेट में रखें और अलका के साथ बाहर आकर अंकल से बात करनी शुरू की-"अंकल जी अब आप ही रश्मि को समझाईये इतना अच्छा चांस वो छोड़ रही है पैसे कमाने का.....। 

पैसे कमाने का.... रश्मि के पिता हैरान होते हुए बोले...। 


हाँ अंकल जी.....हमारे कॉलेज में खेल महोत्सव होने जा रहा है और जीतने वाले को अच्छी खासी रकम भी मिलेगी। "

रश्मि चोंकते हुए राहुल को कुछ बोलने ही वाली थी कि अलका ने उसको इशारा करते हुए चुप रहने को कहा। 

राहुल-" आप तो जानते हैं अभी आप लोगो को पैसों कि कितनी जरूरत है। ऐसे में अगर हजारों रुपये कमाने का मौका मिल रहा है तो ये मना कर रहीं हैं। आप ये भी जानते हैं कि .....ये खेलों में कितनी अच्छी है। प्लीज अब आप ही बोलिए। "


" बेटा अगर तुम जाना चाहतीं हो तो जा सकतीं हो तुम्हारी माँ से मैं बात कर लुंगा। "

रश्मि ने धीरे से .....ठीक है पापा कहा .....और अलका और राहुल की तरफ़ गुस्से से देखते हुए उनकों लेकर बाहर आई। 

बाहर आते ही राहुल को गुस्से से बोली "झूठ बोलने की क्या जरूरत थी राहुल। "

राहुल मुस्कुराते हुए बोला" सच बोलने पर तुझे इतनी आसानी से हां बोलते।" 
ओर वैसे भी किसी के अच्छे के लिए बोला गया झूठ.....झूठ नहीं सच होता है, और वैसे भी तेरे परिवार को सिर्फ पैसों से प्यार है तुझसे नहीं, तो उनकों उसी अंदाज से समझाना मुझे अच्छे से आता है। रही बात जीत पर मिलने वाली रकम की तो उसके बारे में भी कुछ ना कुछ सोच लुंगा। भरोसा रख। 
अभी हम चलते हैं ,हमें ये फार्म आज ही जमा करवाना है, और कल तुझे कालेज आना है क्योंकि कल सभी सलेक्ट हुए स्टुडेंट्स की उनकी कोच के साथ मिटिंग है। "

रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा -ओके, मैं आ जाउंगी। बाय....। 


वो दोनों भी मुस्कुराते हुए वहाँ से चले गए...। उनके जाने के बाद रश्मि मन ही मन सोच रहीं थीं...। राहुल ने ये ठीक नहीं किया.... झूठ बोलकर परमिशन लेना...। लेकिन वो सच भी कह गया की इस वक्त मुझे पैसों की सख्त जरूरत हैं... लेकिन खेलो से कौनसे पैसे मिलने वाले हैं....। अगर जीत मिली भी तो... एक मेडल और सर्टिफिकेट.... ज्यादा से ज्यादा ट्रोफी.... लेकिन इन सबसे पैसे तो नहीं आएंगे ना...। फिर ये राहुल हजारों रुपयों की बात क्यूँ कह गया था... पता नहीं इस लड़के के दिमाग में क्या चलता हैं...। 


क्या होगा रश्मि के आने वाले कल में.... 
क्या राहुल सच में उसे हजारों रुपये देगा.. 
ओर आखिर ये राहुल और अलका कौन थे...? 
जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें...। 







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2 Comments

Babita patel

16-Aug-2023 10:34 AM

Nice

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Reena yadav

04-Jul-2023 10:46 PM

👍👍

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